सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
खड़ा हुआ है कोई और आदमी मिरे साथ
वो मुझ को पहले भी तन्हा कहाँ समझता था
फिर उस ने मेरी उदासी भी देख ली मिरे साथ
Mohsin Naqvi
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ऐ ख़ुदा एक बार मिल मुझ से
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी
मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था
पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में