ऐ ख़ुदा एक बार मिल मुझ से
ये तआरुफ़ तो ग़ाएबाना है
मैं ग़लत वक़्त पर हुआ बेदार
ये किसी और का ज़माना है
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स
मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं
ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है
ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
रोज़ इक बाग़ गुज़रता है इसी रस्ते से