ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
देखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1036) Peoples Rate This
हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
रोज़ इक बाग़ गुज़रता है इसी रस्ते से
निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स
अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी
हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी
मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था
पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
अब मनाना उसे मुश्किल है कि ये आख़िरी पल