आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में

आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में

कोई फ़क़ीर बैठा है सहरा की राह में

फिर यूँ हुआ कि शौक़ से खोली न मैं ने आँख

इक ख़्वाब आ गया था मिरी ख़्वाब-गाह में

इस बार कितनी देर यहाँ हूँ ख़बर नहीं

आ तो गया हूँ फिर से तिरी बारगाह में

फिर कार-ए-ज़िंदगी ने मुझे छोड़ना नहीं

कुछ दिन यहीं गुज़ार लूँ अपनी पनाह में

यारों ने आ के जान बचाई मिरी कि मैं

ख़ुद से उलझ पड़ा था यूँही ख़्वाह-मख़ाह मैं

(1232) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein In Hindi By Famous Poet Abid Malik. Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein is written by Abid Malik. Complete Poem Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein in Hindi by Abid Malik. Download free Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein Poem for Youth in PDF. Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Aasudgan-e-hijr Se Milne Ki Chah Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.