न हो हयात का हासिल तो बंदगी क्या है

न हो हयात का हासिल तो बंदगी क्या है

जो बे-नियाज़ हो सज्दों से ज़िंदगी क्या है

सदा-बहार चमन में भी गर नशेमन हो

तिरे बग़ैर जो गुज़रे वो ज़िंदगी क्या है

ख़ुदा को मान के ख़ुद को ख़ुदा समझता है

अना-परस्ती सरासर है बंदगी क्या है

बस हम कमाल समझते है जीते रहने को

ये कर्बला ने बताया कि ज़िंदगी क्या है

वो जो फ़क़ीर सिफ़त ख़ुद को कहता फिरता है

क़बा हरीर की पहने है सादगी क्या है

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