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ज़र्द मौसम की हवाओं में खड़ा हूँ मैं भी - आबिद करहानी कविता - Darsaal

ज़र्द मौसम की हवाओं में खड़ा हूँ मैं भी

ज़र्द मौसम की हवाओं में खड़ा हूँ मैं भी

और इस सोच में गुम हूँ कि हरा हूँ मैं भी

सुन के हर शख़्स कुछ इस तरह गुज़र जाता है

जैसे गिरते हुए पत्तों की सदा हूँ मैं भी

मेरी आवाज़-ए-शिकस्ता की सताइश न करो

अपनी आवाज़ की लहरों में छुपा हूँ मैं भी

तुझ को तख़्लीक़ किया मैं ने कि मुझ को तू ने

कौन ख़ालिक़ है यही सोच रहा हूँ मैं भी

वो जो तूफ़ान-ए-ख़ुदी ले के बड़ा है 'आबिद'

उस को मालूम नहीं कोह-ए-अना हूँ मैं भी

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