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शिकस्त - आबिद आलमी कविता - Darsaal

शिकस्त

मिरे कलेजे की रग रग से हूक उठती है

मुझे मिरी हर शिकस्तों की दास्ताँ न सुना

न पूछ मुझ से मिरी ख़ामुशी का राज़ न पूछ

मिरे दिमाग़ का हर गोशा दुख रहा है अभी

फ़ज़ा-ए-ज़ुल्मत-ए-माज़ी में ऐ मिरे हमदम

ढके ढके से मिरी कामरानियों के निशाँ

उदास उदास निगाहों की शम्अ' से न टटोल

हर इक के सीना पे बार-ए-शिकस्त है इस वक़्त

तिरा ख़ुलूस मिरी दास्ताँ का उनवाँ है

मिरे हबीब मुझे अब तो अपनी मोहलत दे

कि अपने दर्द को दिल में छुपा के ग़म-ख़ुर्दा

जहाँ से दूर कहीं उस तरफ़ निकल जाऊँ

वो देख वक़्त के चेहरे पे साफ़ लिक्खा है

कि ये शिकस्त मिरी आख़िरी शिकस्त नहीं

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Shikast In Hindi By Famous Poet Abid Almi. Shikast is written by Abid Almi. Complete Poem Shikast in Hindi by Abid Almi. Download free Shikast Poem for Youth in PDF. Shikast is a Poem on Inspiration for young students. Share Shikast with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.