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क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा - आबिद आलमी कविता - Darsaal

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

सारे दरिया को पी गया सहरा

लोग पगडंडियों में खोए रहे

मुझ को रस्ता दिखा गया सहरा

धूप ने क्या किया सुलूक उस से

जैसे धरती पे बोझ था सहरा

बढ़ती आती थी मौज दरिया की

मैं ने घर में बुला लिया सहरा

जाने किस शख़्स का मुक़द्दर है

धूप में तपता बे-सदा सहरा

खो के अपना वजूद अँधेरे में

रात कितना उदास था सहरा

ज़ेहन को वादियाँ उठाते फिरें

आँख में आ के बस गया सहरा

मेरे क़दमों को चूमने के लिए

रस्ते रस्ते से जा मिला सहरा

मैं समुंदर को घर में ले आया

मेरे दर पर पड़ा रहा सहरा

मेरा इस में बिखरना था 'आबिद'

फिर मुझे ढूँढता फिरा सहरा

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