दे गया आख़िरी सदा कोई

दे गया आख़िरी सदा कोई

फ़ासलों पर बिखर गया कोई

रात का दर्द बाँटने के लिए

रात-भर जागता रहा कोई

एक साए की तरह बे-आवाज़

मेरे दर पर खड़ा रहा कोई

आसमाँ से परे भी कुछ होगा

उम्र-भर सोचता रहा कोई

सूख जाने दे टूट जाने दे

ले उड़ेगी मुझे हवा कोई

या बना दे पहाड़ का पत्थर

या मुझे रास्ता दिखा कोई

तोड़ कर जिस्म के दर-ओ-दीवार

आइने में उतर गया कोई

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