लहर का ख़्वाब हो के देखते हैं
लहर का ख़्वाब हो के देखते हैं
चल तह-ए-आब हो के देखते हैं
उस पे इतना यक़ीन है हम को
उस को बेताब हो के देखते हैं
रात को रात हो के जाना था
ख़्वाब को ख़्वाब हो के देखते हैं
अपनी अरज़ानियों के सदक़े हम
ख़ुद को नायाब हो के देखते हैं
साहिलों की नज़र में आना है
फिर तो ग़र्क़ाब हो के देखते हैं
वो जो पायाब कह रहा था हमें
उस को सैलाब हो के देखते हैं
(1356) Peoples Rate This