इंतिज़ार

जब मिले थे तुम से पहली मर्तबा

ये लगा जैसे कि सब कुछ पा लिया

मिल गई थी इस जहाँ की हर ख़ुशी

बदली बदली हो गई थी ज़िंदगी

एक दिन फिर हाए ऐसा भी हुआ

हो गए इक दूसरे से हम जुदा

मिलने की बस आस बाक़ी रह गई

इक तड़पती प्यास बाक़ी रह गई

आज भी इस दिल को मेरे है यक़ीं

क्या पता किस मोड़ टकराए कहीं

इस लिए उम्मीद रख कर बरक़रार

करता हूँ हर-पल तुम्हारा इंतिज़ार

(2784) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Intizar In Hindi By Famous Poet Abhishek Kumar Amber. Intizar is written by Abhishek Kumar Amber. Complete Poem Intizar in Hindi by Abhishek Kumar Amber. Download free Intizar Poem for Youth in PDF. Intizar is a Poem on Inspiration for young students. Share Intizar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.