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अभी तक हौसला ठहरा हुआ है - अब्दुस्समद ’तपिश’ कविता - Darsaal

अभी तक हौसला ठहरा हुआ है

अभी तक हौसला ठहरा हुआ है

नफ़स का सिलसिला ठहरा हुआ है

रगों पर आज भी है लर्ज़ा तारी

निगह में हादसा ठहरा हुआ है

फ़क़त क़ाबील ने बुनियाद डाली

अभी तक सिलसिला ठहरा हुआ है

बस इक तार-ए-नफ़स का टूटना है

यही इक हादसा ठहरा हुआ है

नज़र की चूक थी बस एक लम्हा

सदी का क़ाफ़िला ठहरा हुआ है

जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं

वहीं तक रास्ता ठहरा हुआ है

वो हम से रूठ कर भी दूर कब हैं

दिलों का राब्ता ठहरा हुआ है

वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है

उसी से फ़ैसला ठहरा हुआ है

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