हक़ मिरा मुझ को मिरे यार नहीं देते हैं

हक़ मिरा मुझ को मिरे यार नहीं देते हैं

धूप में साया-ए-दीवार नहीं देते हैं

कैसे दरिया को करूँ पार कि मेरे मोहसिन

नाव तो देते हैं पतवार नहीं देते हैं

अपनी नामूस की आती है हिफ़ाज़त जिन को

जान दे देते हैं दस्तार नहीं देते हैं

ख़ूगर-ए-अम्न बनाने की है ख़्वाहिश जिन को

अपने बच्चों को वो तलवार नहीं देते हैं

ख़ुद तो 'आसी' ये बसर करते हैं आराम के साथ

चैन नादारों को ज़रदार नहीं देते हैं

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Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain In Hindi By Famous Poet Abdushshukoor Aasi. Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain is written by Abdushshukoor Aasi. Complete Poem Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain in Hindi by Abdushshukoor Aasi. Download free Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain Poem for Youth in PDF. Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Haq Mera Mujhko Mere Yar Nahin Dete Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.