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ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है - अब्दुर्राहमान वासिफ़ कविता - Darsaal

ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है

ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है

कि एक शोर बला का मिरे वजूद में है

ये किस ने मेरी नज़र को बनाया आईना

ये नूर किस ने उजाला मिरे वजूद में है

इस एक फ़िक्र ने घोले मिरी हयात में ग़म

तू दूर क्यूँ नहीं जाता मिरे वजूद में है

कोई चराग़ मिरी सम्त भी रवाना करो

बहुत दिनों से अँधेरा मिरे वजूद में है

जो बूँद बूँद जलाती है तन बदन मेरा

वो आगही की तमन्ना मिरे वजूद में है

मैं एक मौज में हूँ जब से रौशनी मिली है

ये लग रहा है कि दुनिया मिरे वजूद में है

मैं बंद आँख से दुनिया को देख सकता हूँ

इक ऐसी चश्म-ए-तमाशा मिरे वजूद में है

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