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दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं - अब्दुर्राहमान वासिफ़ कविता - Darsaal

दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं

दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं

ख़ाली कहाँ बुत-ख़ाना-ए-आज़र से उठा मैं

यूँ है कि ज़बरदस्ती उठाया गया मुझ को

ऐसे तो नहीं कू-ए-सितमगर से उठा मैं

अहबाब में दिल खोल के अब जश्न मना ले

ले आज तिरे सहन-ए-मुअ'त्तर से उठा मैं

इक बोझ उठाए हुए आँखों में कटी शब

इक इस्म को पढ़ते हुए बिस्तर से उठा मैं

तू आलम-ए-रूया में मुझे छोड़ के पल्टा

फिर चौंक के ख़ुद अपने बराबर से उठा मैं

थामूँगा नहीं अब के मुनाजात का दामन

दिल तुझ से उठा और तिरे दर से उठा मैं

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