एक नज़्म
शब के फाटक से परे
मैं ने चुराए बोसे
जो तेरे ज़ानू की रेहल पे ठिटके
धान के ख़ेमे में इक तू था
या पानी का लगातार ख़रोश
आख़िरी बार जवानी की किताब
दुख़्तर-ए-रज़ ने खोली
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शब के फाटक से परे
मैं ने चुराए बोसे
जो तेरे ज़ानू की रेहल पे ठिटके
धान के ख़ेमे में इक तू था
या पानी का लगातार ख़रोश
आख़िरी बार जवानी की किताब
दुख़्तर-ए-रज़ ने खोली
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