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दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया - अब्दुल्लतीफ़ शौक़ कविता - Darsaal

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

मुख़्तसर सी ज़िंदगी में मैं ने क्या क्या कर लिया

दिल की ख़ातिर कुफ़्र भी उस ने गवारा कर लिया

एक पत्थर ख़ुद तराशा ख़ुद ही सज्दा कर लिया

आप की चाहत का मिलना जान लूँगा मुफ़्त है

जान दे कर भी अगर मैं ने ये सौदा कर लिया

बाल-ओ-पर अपने सलामत डर अंधेरों का नहीं

चार तिनके जब भी फूंके हैं उजाला कर लिया

दर्द बख़्शा चैन छीना दिल के टुकड़े कर दिए

हाए किस ज़ालिम पे मैं ने भी भरोसा कर लिया

'शौक़' जब तक साँस है तब तक है उम्मीद-ए-हयात

क्यूँ अभी से आप ने दिल अपना छोटा कर लिया

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