अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो
अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर भी ले चलो
सब जा रहे गुलाब से चेहरे लिए हुए
तुम आइनों के शहर में पत्थर भी ले चलो
यूँ कम नहीं है शीरीं-बयानी ही आप की
चाहो तो आस्तीन में ख़ंजर भी ले चलो
मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल
नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो
क्या जाने कैसे ख़्वाब सजाने पड़ें ऐ 'शौक़'
आँखो में इक हसीन सा मंज़र भी ले चलो
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