इक मुसलसल जंग थी ख़ुद से कि हम ज़िंदा हैं आज
इक मुसलसल जंग थी ख़ुद से कि हम ज़िंदा हैं आज
ज़िंदगी हम तेरा हक़ यूँ भी अदा करते रहे
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इक मुसलसल जंग थी ख़ुद से कि हम ज़िंदा हैं आज
ज़िंदगी हम तेरा हक़ यूँ भी अदा करते रहे
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