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वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे - अब्दुल्लाह कमाल कविता - Darsaal

वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे

वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे

हवा में मेरे हवाले से गुनगुनाएँ उसे

उदास रातों में आवारा-गर्द बंजारे

हटा लें बाँसुरी होंटों से और गाएँ उसे

वो मेरा दिल है कोई रेत का घरौंदा नहीं

कि शोख़ मौजें मिटाएँ उसे बनाएँ उसे

है दिल में दर्द का लश्कर पड़ाव डाले हुए

मिले वो जान-ए-ग़ज़ल तो कहाँ सजाएँ उसे

ग़ज़ल है नाम फ़लक पर क़याम है उस का

कभी फ़लक से ज़मीं पर उतार लाएँ उसे

बिछड़ गया तो पलट कर कभी न आएगा

हज़ार दश्त-ओ-बयाबाँ में दो सदाएँ उसे

वो दिल का दर्द सही जान बन गया है 'कमाल'

हम अपनी जान से जाएँ तो भूल जाएँ उसे

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