तुम अपने अक्स में क्या देखते हो
तुम्हारा अक्स भी तुम सा नहीं है
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दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया
मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ
कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
जो गुज़रता है गुज़र जाए जी
यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने
शाइरी पेट की ख़ातिर 'जावेद'
साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे
इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त
ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ