सजाते हो बदन बेकार 'जावेद'
तमाशा रूह के अंदर लगेगा
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तुम अपने अक्स में क्या देखते हो
चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया
मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं
दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया
देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल
नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था
कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा
अश्क ढलते नहीं देखे जाते
शाइरी पेट की ख़ातिर 'जावेद'
रूह को क़ालिब के अंदर जानना मुश्किल हुआ