मंज़रों के भी परे हैं मंज़र
आँख जो हो तो नज़र जाए जी
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1242) Peoples Rate This
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
याद यूँ होश गँवा बैठी है
यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने
कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा
अश्क ढलते नहीं देखे जाते
इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था
साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे
तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ
कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
चाँदनी का रक़्स दरिया पर नहीं देखा गया
जो गुज़रता है गुज़र जाए जी