जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक
गुम हुई है जो मंज़िल तो रस्ते बहुत
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ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ
मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ
दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया
नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
लगे है आसमाँ जैसा नहीं है
यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने
चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया
हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं
शाइरी पेट की ख़ातिर 'जावेद'
मंज़रों के भी परे हैं मंज़र