इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
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यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने
देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल
याद यूँ होश गँवा बैठी है
तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ
अश्क ढलते नहीं देखे जाते
नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
हर इक रस्ते पे चल कर सोचते हैं
फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी
हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना