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मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ - अब्दुल्लाह जावेद कविता - Darsaal

मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ

मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ

ऐ दोस्त मुझे सुन कि मैं गुम्बद की सदा हूँ

जिस राह से पहले कोई हो कर नहीं गुज़रा

उस राह पे मैं नक़्श-ए-क़दम छोड़ रहा हूँ

मैं अपने उसूलों का गराँ बार उठाए

हर वक़्त हवाओं के मुख़ालिफ़ ही चला हूँ

बे-माया हबाबो मुझे देखो कि अदम से

मैं सू-ए-अबद सैल की सूरत में बहा हूँ

हर अस्र की तख़्लीक़ में कुछ हाथ है मेरा

मैं वक़्त के ज़िंदाँ में भी आज़ाद रहा हूँ

सदियों से मैं अपने को बनाने में हूँ मसरूफ़

बंदा हूँ मगर ग़ौर से देखो तो ख़ुदा हूँ

हालात की गर्दिश से हिरासाँ नहीं 'जावेद'

मैं गर्दिश-ए-अफ़्लाक की गोदी में पला हूँ

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