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जो गुज़रता है गुज़र जाए जी - अब्दुल्लाह जावेद कविता - Darsaal

जो गुज़रता है गुज़र जाए जी

जो गुज़रता है गुज़र जाए जी

आज वो कर लें कि भर जाए जी

आज की शब यहीं जीना मरना

जिस को जाना हो वो घर जाए जी

इस गली से नहीं जाना हम को

आन रुख़्सत हो कि सर जाए जी

वक़्त ने कर दिया जो करना था

कोई मरता है तो मर जाए जी

शाख़-ए-गुल मौज-ए-हवा रक़्साँ हैं

फूल बिखरे तो बिखर जाए जी

मंज़रों के भी परे हैं मंज़र

आँख जो हो तो नज़र जाए जी

सम्त क्या राह क्या मंज़िल कैसी

चल पड़ो आप जिधर जाए जी

अपनी ही सोच पे चलना चाहे

अपनी ही सोच से डर जाए जी

ये अजब बात है अक्सर 'जावेद'

जिस से रोकें वही कर जाए जी

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