जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं

जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं

राह शब भर देखना अच्छा नहीं

आशिक़ी की सोचना तो ठीक है

आशिक़ी कर देखना अच्छा नहीं

इज़्न-ए-जल्वा है झलक भर के लिए

आँख भर कर देखना अच्छा नहीं

इक तिलिस्मी शहर है ये ज़िंदगी

पीछे मुड़ कर देखना अच्छा नहीं

अपने बाहर देख कर हँस बोल लें

अपने अंदर देखना अच्छा नहीं

फिर नई हिजरत कोई दरपेश है

ख़्वाब में घर देखना अच्छा नहीं

सर बदन पर देखिए 'जावेद' जी

हाथ में सर देखना अच्छा नहीं

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Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin In Hindi By Famous Poet Abdullah Javed. Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin is written by Abdullah Javed. Complete Poem Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin in Hindi by Abdullah Javed. Download free Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin Poem for Youth in PDF. Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Jaanib-e-dar Dekhna Achchha Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.