Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_4c0193a47ae309360e80215c5fe61e6d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना - अब्दुल्लाह जावेद कविता - Darsaal

हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना

हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना

खींची हुई है वक़्त ने तलवार देखना

इस दोपहर की धूप में साया कहाँ मिले

दिन ढल चले तो फिर कहीं दीवार देखना

अब तो सफ़र के सख़्त मराहिल हैं और हम

जब पास आए मंज़िल-ए-दिलदार देखना

बे-ताबियाँ हों लाख मगर उस के रू-ब-रू

छोड़ें न हाथ दामन-ए-पिंदार देखना

ऐ मस्लहत की पस्त ज़मीनों के बासियो

कितनी बुलंदियाँ हैं सर-ए-दार देखना

ज़र्रा भी आफ़्ताब से कमतर नहीं यहाँ

यारो मगर ब-दीदा-ए-बेदार देखना

'जावेद' हम हैं और है एहसास का ख़ुलूस

यारों के पास झूट के तूमार देखना

(1231) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna In Hindi By Famous Poet Abdullah Javed. Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna is written by Abdullah Javed. Complete Poem Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna in Hindi by Abdullah Javed. Download free Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna Poem for Youth in PDF. Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna is a Poem on Inspiration for young students. Share Har Lamha Marg-o-zist Mein Paikar Dekhna with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.