तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है
तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है
मुझ शब की रौशनी कूँ तुझ रुख़ का माह बस है
सुर्मा से गर्द-ए-मिज़्गाँ सफ़ बाँध के बिठी हैं
शाह-ए-नयन कूँ तेरी यू क़िब्ला-गाह बस है
दिल की शिकस्तगी सूँ पाया हूँ बादशाही
करने कूँ सरवरी के ऐसी कुलाह बस है
महशर के ख़ुर की तप सीं कुछ डर नहीं हमन कूँ
ज़ुल्फ़-ए-सियह का साया दिल की पनाह बस है
दो जा नहीं है जग में मौजूद जुज़ ख़ुदा के
इस बात की शहादत इक ला-इलाह बस है
'यकरू' हुआ है पानी सुन 'आबरू' का मिस्रा
''रखने को यूसुफ़ाँ के इक दिल की चाह बस है''
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