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तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है - अब्दुल वहाब यकरू कविता - Darsaal

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

मुझ शब की रौशनी कूँ तुझ रुख़ का माह बस है

सुर्मा से गर्द-ए-मिज़्गाँ सफ़ बाँध के बिठी हैं

शाह-ए-नयन कूँ तेरी यू क़िब्ला-गाह बस है

दिल की शिकस्तगी सूँ पाया हूँ बादशाही

करने कूँ सरवरी के ऐसी कुलाह बस है

महशर के ख़ुर की तप सीं कुछ डर नहीं हमन कूँ

ज़ुल्फ़-ए-सियह का साया दिल की पनाह बस है

दो जा नहीं है जग में मौजूद जुज़ ख़ुदा के

इस बात की शहादत इक ला-इलाह बस है

'यकरू' हुआ है पानी सुन 'आबरू' का मिस्रा

''रखने को यूसुफ़ाँ के इक दिल की चाह बस है''

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