सुनाया यार नीं आ कर दो तारा
सुनाया यार नीं आ कर दो तारा
बुलंदी पे चढ़ा मेरा सितारा
मज़ेदारी है सारी हिन्द के बेच
न कर अज़्म-ए-समरक़ंद-ओ-बुख़ारा
रहा है इश्क़-बाज़ी बेच वो चुस्त
बुताँ कन नक़्द-ए-दिल कूँ जिन नीं हारा
रहेगा जान जीता क्यूँके 'यकरू'
निगह का तीर तुझ अँखियाँ नीं मारा
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