मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का
मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का
तरी अँखियाँ सलोनी साँवली का
गया तन सूख अँखियाँ तर हैं ग़म सीं
हुआ हूँ शाह ख़ुश्की ओ तरी का
जभी तू पान खा कर मुस्कुराया
तभी दिल खिल गया गुल की कली का
कहता हूँ वस्फ़ दंदाँ-ओ-मिसी के
मज़ा लेता हों अब तल-चावली का
नहीं है रेख़्ते के बहर का पार
समझ मत शेर उस कूँ पारसी का
जो रू पाओ तो दिल मेरा दिखाओ
सुना है शोख़ ख़्वाहाँ आरसी का
मुझे कहते हैं 'यकरू' सब मोहिब्बाँ
कि बंदा जाँ सीं हूँ हज़रत-'अली' का
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