लोग हर-चंद पंद करते हैं
लोग हर-चंद पंद करते हैं
आशिक़ाँ कब पसंद करते हैं
जामा-ज़ोबाँ दिखा के क़द अपना
दिल-ए-उश्शाक़ बंद करते हैं
निगह-ए-गर्म सीं सदा आशिक़
आतिश-ए-दिल बुलंद करते हैं
शोख़-चश्माँ ले जाने कूँ दिल के
ख़म-ए-अबरू कमंद करते हैं
जो कि तुझ लाल-ए-लब के तालिब हैं
क़ंद कूँ कब पसंद करते हैं
गर नहीं मसख़रा रक़ीब उस कूँ
लोग कवें रीश-ए-ख़ंद करते हैं
जो कि चलते हैं इश्क़ की रह में
दिल कूँ 'यकरू' समंद करते हैं
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