ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं
ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं
फ़ित्ना बरपा तमाम करते हैं
मै-कशाँ जा के मय-कदे के बीच
सैर-ए-बैत-उल-हराम करते हैं
तुझ निगह की शराब साथ जिगर
गज़क आशिक़ मुदाम करते हैं
मुर्ग़-ए-दिल को दिखा के दाना-ए-ख़ाल
दिल-बराँ ज़ुल्फ़-ए-दाम करते हैं
जो हैं तुझ दीद के गुरसना-ए-चश्म
कब वे ज़ौक़-ए-तआम करते हैं
जो कि पीते हैं ख़ून-ए-दिल जूँ मय
चश्म अपने कूँ जाम करते हैं
कब मिलेगा वो जान अब 'यकरू'
दिल पे ग़म इज़दिहाम करते हैं
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