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साकिन है कोई और वतन और किसी का - अब्दुल वहाब सुख़न कविता - Darsaal

साकिन है कोई और वतन और किसी का

साकिन है कोई और वतन और किसी का

ये रूह किसी की है बदन और किसी का

सुर्ख़ी है कहो की मिरे हर सर्व-ओ-समन में

पढ़ता है क़सीदा ये चमन और किसी का

तस्कीन का बाइ'स है किसी और का पहलू

एहसास दिलाती है चुभन और किसी का

आईना समझते हैं तुझे सब ये अलग बात

है तुझ में मगर आईना-पन और किसी का

ये प्यार का जज़्बा तिरे कुछ काम तो आए

मेरा नहीं बनता है तो बन और किसी का

कहते हैं सुख़नवर मुझे निस्बत से तिरी सब

रहता है मिरे लब पे 'सुख़न' और किसी का

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Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka In Hindi By Famous Poet Abdul Wahab Sukhan. Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka is written by Abdul Wahab Sukhan. Complete Poem Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka in Hindi by Abdul Wahab Sukhan. Download free Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka Poem for Youth in PDF. Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Sakin Hai Koi Aur Watan Aur Kisi Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.