ऐ मेरी आँखो ये बे-सूद जुस्तुजू कैसी
ऐ मेरी आँखो ये बे-सूद जुस्तुजू कैसी
जो ख़्वाब ख़्वाब रहीं उन की आरज़ू कैसी
रगों में ख़ून है शाख़ों की सुर्ख़-रू ग़ुंचे
ख़िज़ाँ में अब के बहारों की रंग-ओ-बू कैसी
तमाम पत्तों को मौसम ने ज़र्द ज़र्द किया
ये एक शाख़-ए-तमन्ना है सब्ज़-रू कैसी
करो तो याद मिलन के वो अव्वलीं लम्हे
कि छिड़ गई थी निगाहों में गुफ़्तुगू कैसी
ये शहर-ए-दिल में भला आज किस की आमद है
ये महव-ए-रक़्स हैं ख़ुशबूएँ कू-ब-कू कैसी
उफ़ुक़ का चेहरा 'सुख़न' इस कदर उदास है क्यूँ
शफ़क़ के रंग में ये सुर्ख़ी-ए-लहू कैसी
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