काश समझते अहल-ए-ज़माना
काश समझते अहल-ए-ज़माना
क्या है हक़ीक़त क्या है फ़साना
इश्क़ का शेवा हुस्न की फ़ितरत
एक हक़ीक़त एक फ़साना
राह-ए-वफ़ा दुश्वार बहुत है
सोच समझ कर पाँव बढ़ाना
तुम न हो जिस के कौन हो उस का
जिस के हुए तुम उस का ज़माना
रहरव-ए-राह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत
जान तो देना लब न हिलाना
पहलु-ए-गुल में ख़ार निहाँ हैं
गुलचीं अपना हाथ बचाना
हम ने तो 'वसफ़ी' पाया है उन को
जल्वा-ब-जल्वा ख़ाना-ब-ख़ाना
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