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दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है - अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची कविता - Darsaal

दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है

दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है

ये ऐसी हक़ीक़त है जो अफ़्साना लगे है

आलम न कोई पूछे मिरी वहशत-ए-दिल का

घर अपने अगर जाऊँ तो वीराना लगे है

बढ़ते नहीं क्यूँ मेरे क़दम आगे की जानिब

नज़दीक ही शायद दर-ए-जानाना लगे है

वैसे तो किसी ने मुझे ऐसा नहीं जाना

दीवाना कहा तुम ने तो दीवाना लगे है

रूदाद-ए-अलम उन से जो क़ासिद ने बयाँ की

फ़रमाने लगे हँस के ये अफ़्साना लगे है

मैं ने तो बनाई थी फ़क़त आप की तस्वीर

दिल मेरा मगर आज सनम-ख़ाना लगे है

अब अपना भी बेगाना नज़र आता है 'वसफ़ी'

बेगाना तो बेगाना है बेगाना लगे है

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