Love Poetry of Abdul Rahman Ehsan Dehlvi
नाम | अब्दुल रहमान एहसान देहलवी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Abdul Rahman Ehsan Dehlvi |
उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है
तनख़्वाह एक बोसा है तिस पर ये हुज्जतें
नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुई
मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है
ग़ुंचा को मैं ने चूमा लाया दहन को आगे
गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
अँधेरी रात को मैं रोज़-ए-इश्क़ समझा था
ज़ात उस की कोई अजब शय है
तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया
सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले
सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी
पूछी न ख़बर कभी हमारी
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है
न अदा मुझ से हुआ उस सितम-ईजाद का हक़
म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा
मरते दम नाम तिरा लब के जो आ जाए क़रीब
महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे
कुछ तौर नहीं बचने का ज़िन्हार हमारा
जान अपनी चली जाए हे जाए से कसू की
हर आन जल्वा नई आन से है आने का
ग़म याँ तो बिका हुआ खड़ा है
गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला
दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश
दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है
दिल तो हाज़िर है अगर कीजिए फिर नाज़ से रम्ज़
बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे