न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला
न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला
निकाला बैर मुझ से जब तिरे पिस्ताँ का मुँह काला
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न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला
निकाला बैर मुझ से जब तिरे पिस्ताँ का मुँह काला
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