नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है
निकल ऐ जान तू ही वो नहीं घर से निकलता है
जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तक
चराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है
नहीं ये अश्क-ओ-लख़्त-ए-दिल तिरी उल्फ़त की दौलत से
मिरा ये दीदा हर दम लअ'ल और गौहर उगलता है
किसी का साथ सोना याद आता है तो रोता हूँ
मिरे अश्कों की शिद्दत से सदा गुल-तकिया गलता है
मिलाता हूँ अगर आँखें तो वो दिल को चुराता है
जो मैं दिल को तलब करता हूँ वो आँखें बदलता है
मिरे पहलू-ओ-सीना में बुतों के रह गए ख़ंजर
ख़ुदा का फ़ज़्ल जिस पर हो तो वो इस तरह बहलता है
सदा ही मेरी क़िस्मत जूँ सदा-ए-हल्क़ा-ए-दर है
अगर मैं घर में जाता हूँ तो वो बाहर निकलता है
वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'
कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
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