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क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने - अब्दुल रहमान एहसान देहलवी कविता - Darsaal

क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने

क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने

मर कहा तू ने मर्हबा मैं ने

क्यूँ सुराही-ए-मय को दे पटका

तू ने तोड़ा या बेवफ़ा मैं ने

ना-तवानी में ये तवानाई

दिल को तुझ से उठा दिया मैं ने

दे के ये तुझ को ये लिया कि दिया

गौहर-ए-बे-बहा लिया मैं ने

क्यूँ ख़ुम-ए-मय को मोहतसिब तोड़ा

क्या किया मैं ने क्या किया मैं ने

क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरा

तुझ को देखा रुका रुका मैं ने

गुल हज़ारों में शम्अ'-ए-ऐश 'एहसाँ'

जैसे उस गुल को दिल दिया मैं ने

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