मैं शब-ए-हिज्र क्या करूँ तन्हा

मैं शब-ए-हिज्र क्या करूँ तन्हा

याद में तेरी गुम रहूँ तन्हा

हैं इधर गर्दिशें ज़माने की

है मुक़ाबिल उधर जुनूँ तन्हा

कितने बे-नूर हैं ये हंगामे

मैं भरे शहर में भी हूँ तन्हा

आदमी घिर गया मसाइल में

रह गई ज़ीस्त बे-सुकूँ तन्हा

वो तो इस दौर के नहीं इंसाँ

मिल गया है जिन्हें सुकूँ तन्हा

हम-सफ़र जब 'नियाज़' अँधेरे हैं

शम्अ' घबरा रही है क्यूँ तन्हा

(1121) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha In Hindi By Famous Poet Abdul Mateen Niyaz. Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha is written by Abdul Mateen Niyaz. Complete Poem Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha in Hindi by Abdul Mateen Niyaz. Download free Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha Poem for Youth in PDF. Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha is a Poem on Inspiration for young students. Share Main Shab-e-hijr Kya Karun Tanha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.