हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो
हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो
आप तज्दीद-ए-मुलाक़ात की बातें न करो
दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है
दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो
हिम्मतें क़ाफ़िले वालों की न हों पस्त कहीं
रहरव-ए-गर्दिश-ए-हालात की बातें न करो
चाहिए जोश-ए-तलब मेरे शिकस्ता-दिल को
ऐसे हालात में सदमात की बातें न करो
ज़िंदगी और भी तशरीह-तलब है यारो
ग़म के तपते हुए लम्हात की बातें न करो
कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़'
आप अब मुझ से इनायात की बातें न करो
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