हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो

हिज्र में गुज़री है उस रात की बातें न करो

आप तज्दीद-ए-मुलाक़ात की बातें न करो

दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है

दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो

हिम्मतें क़ाफ़िले वालों की न हों पस्त कहीं

रहरव-ए-गर्दिश-ए-हालात की बातें न करो

चाहिए जोश-ए-तलब मेरे शिकस्ता-दिल को

ऐसे हालात में सदमात की बातें न करो

ज़िंदगी और भी तशरीह-तलब है यारो

ग़म के तपते हुए लम्हात की बातें न करो

कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़'

आप अब मुझ से इनायात की बातें न करो

(1118) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo In Hindi By Famous Poet Abdul Mateen Niyaz. Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo is written by Abdul Mateen Niyaz. Complete Poem Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo in Hindi by Abdul Mateen Niyaz. Download free Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo Poem for Youth in PDF. Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo is a Poem on Inspiration for young students. Share Hijr Mein Guzri Hai Us Raat Ki Baaten Na Karo with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.