हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख

हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख

रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख

तू किसी हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ की तस्वीर न देख

अपने गुज़रे हुए हालात की तफ़्सीर न देख

हुस्न-ए-तदबीर से तक़दीर बदल दे अपनी

जो है हालात से मंसूब वो तक़दीर न देख

तू परस्तार-ए-अमल है तो अमल की ख़ातिर

ख़्वाब-ए-रंगीं की क़सम ख़्वाब की ता'बीर न देख

रज़्म-ए-हस्ती से गुज़रना है अगर तुझ को 'नियाज़'

ज़ुल्मत-ए-शब को समझ सुब्ह की तनवीर न देख

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Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh In Hindi By Famous Poet Abdul Mateen Niyaz. Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh is written by Abdul Mateen Niyaz. Complete Poem Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh in Hindi by Abdul Mateen Niyaz. Download free Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh Poem for Youth in PDF. Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh is a Poem on Inspiration for young students. Share Ham-nafas KHwab-e-junun Ki Koi Tabir Na Dekh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.