दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है

दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है

अहल-ए-वतन को फ़ित्ना-ए-दौराँ की फ़िक्र है

गुलशन की फ़िक्र है न बयाबाँ की फ़िक्र है

अहल-ए-जुनूँ को फ़स्ल-ए-बहाराँ की फ़िक्र है

लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम

बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है

हम मक़्तल-ए-हयात में हैं सर-ब-कफ़ मगर

अहल-ए-हवस को अपने दिल-ओ-जाँ की फ़िक्र है

साहिल से दूर रह के है मंज़िल की जुस्तुजू

मौजों की फ़िक्र हम को न तूफ़ाँ की फ़िक्र है

हम को नहीं है फ़िक्र किसी बात की 'नियाज़'

तारीकियों में शम-ए-फ़रोज़ाँ की फ़िक्र है

(1312) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai In Hindi By Famous Poet Abdul Mateen Niyaz. Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai is written by Abdul Mateen Niyaz. Complete Poem Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai in Hindi by Abdul Mateen Niyaz. Download free Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai Poem for Youth in PDF. Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Daman Ki Fikr Hai Na Gareban Ki Fikr Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.