अपने वहम-ओ-गुमान से निकला

अपने वहम-ओ-गुमान से निकला

मैं अँधेरे मकान से निकला

बे-रुख़ी देख अब ज़माने की

मुद्दआ' क्यूँ ज़बान से निकला

सम्त का ग़म न था सफ़ीने को

ये अलम बादबान से निकला

धूप बरसा रही थीं तलवारें

फिर भी मैं साएबान से निकला

वक़्त मोहलत न देगा फिर तुम को

तीर जिस दम कमान से निकला

आ गया लीजिए साहिल-ए-हस्ती

मैं बड़े इम्तिहान से निकला

ज़िंदगी का नया मिज़ाज 'नियाज़'

दर्द के ख़ानदान से निकला

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Apne Wahm-o-guman Se Nikla In Hindi By Famous Poet Abdul Mateen Niyaz. Apne Wahm-o-guman Se Nikla is written by Abdul Mateen Niyaz. Complete Poem Apne Wahm-o-guman Se Nikla in Hindi by Abdul Mateen Niyaz. Download free Apne Wahm-o-guman Se Nikla Poem for Youth in PDF. Apne Wahm-o-guman Se Nikla is a Poem on Inspiration for young students. Share Apne Wahm-o-guman Se Nikla with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.