सू-ए-सहरा ही चलें शायद रहें महफ़ूज़ कुछ
सू-ए-सहरा ही चलें शायद रहें महफ़ूज़ कुछ
अब तो सेहन-ए-गुलिस्ताँ भी ज़लज़ला से कम नहीं
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सू-ए-सहरा ही चलें शायद रहें महफ़ूज़ कुछ
अब तो सेहन-ए-गुलिस्ताँ भी ज़लज़ला से कम नहीं
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