पुर्सिश है चश्म-ए-अश्क-फ़शाँ पर न आए हर्फ़
पुर्सिश है चश्म-ए-अश्क-फ़शाँ पर न आए हर्फ़
डूबें भी हम तो सैल-ए-रवाँ पर न आए हर्फ़
दोनों ही अपनी अपनी जगह ला-जवाब हैं
अपने यक़ीं पे उन के गुमाँ पर न आए हर्फ़
ऐ रश्क इतना वहम-ओ-गुमाँ भी बजा नहीं
एहसास-ए-क़ुर्बत-ए-रग-ए-जाँ पर न आए हर्फ़
दिल ना-मुराद शो'ला-ए-आरिज़ से जल गया
डरते थे हम कि सोज़-ए-निहाँ पर न आए हर्फ़
हुशियार बज़्म-ए-ग़ैर में नाम उन का आ न जाए
ऐ नग़्मा-संज जोश-ए-बयाँ पर न आए हर्फ़
तीर-ए-निगाह दिल में तराज़ू हुआ तो हो
अब तेरे अबरुओं की कमाँ पर न आए हर्फ़
हम उन के रू-ब-रू रहे इस मस्लहत से चुप
महफ़िल में अपने इज्ज़-ए-बयाँ पर न आए हर्फ़
उड़ जाए तेग़ से तो रहे सरफ़राज़ सर
कट जाए बात पर तो ज़बाँ पर न आए हर्फ़
इस कश्मकश में तेरी गली से परे रहे
आए कहाँ पे हर्फ़ कहाँ पर न आए हर्फ़
'तर्ज़ी' तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-ख़ाली से ख़ुश नहीं
बस जाओ तुम तो दिल के मकाँ पर न आए हर्फ़
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