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पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया - अब्दुल मन्नान तरज़ी कविता - Darsaal

पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया

पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया

तोड़ देता है किनारा दरिया

कैसे डूबेगी भँवर में कश्ती

कैसे देगा न सहारा दरिया

सैल-ए-हिम्मत हैं हमारे बाज़ू

डूब जाएगा तुम्हारा दरिया

बंद अफ़्कार ने बाँधे लेकिन

चढ़ के उतरा न हमारा दरिया

अहल-ए-हिम्मत ने डुबोया सब को

ना-ख़ुदाओं से न हारा दरिया

ऐ असीर-ए-ग़म साहिल इधर आ

बीच धारे से पुकारा दरिया

हिम्मत-ए-तर्क-ए-वफ़ा डूब गई

किस ने आँखों में उतारा दरिया

मौज ने पूछ लिया कल 'तरज़ी'

कश्ती प्यारी है कि प्यारा दरिया

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